BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 10

छायावाद

 

प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

अथवा
हिन्दी छायावादी काव्य के सांस्कृतिक पक्ष पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
अथवा
छायावादी काव्य की विशेषताएँ बताइये।
अथवा
छायावाद की 'चतुष्टयी' का परिचय दीजिए।
अथवा
छायावाद का स्वरूप विश्लेषण करते हुये इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

जिस प्रकार साहित्य के पूर्ण इतिहास को विविध युगों में बाँटा जा सकता है। उसी प्रकार काल विशेष के साहित्य को विविध धाराओं या कालखण्डों में विभाजित किया जा सकता है। भक्तिकाल में भक्ति की विविध धाराएँ एक ही परिवेश के विविध पक्षों से प्रेरणा ग्रहण करती हुई प्रायः सामान्तर रूप से प्रभावित होती रही, किन्तु आधुनिककाल का जीवन सिर्फ एक ही काल में अनेक प्रकार का जीवन नहीं है - वह समय की गति के साथ-साथ विकासशील है। विज्ञान के अविष्कारों और उनसे उत्पन्न होने वाले प्रभावों के कारण जीवन दूत गति से और निरन्तर परिवर्तित होता रहा है। प्राचीनकाल में जीवन की प्रगति पहले विचार के स्तर पर होती थी जो अध्यात्मिक आन्दोलनों के रूप में दिखाई देती थी, किन्तु आज के जीवन- का विकास पहले भौतिक आधार पर होता है और फिर यह भौतिक विकास युग को आध्यात्मिक विकास के.... लिये आन्दोलित करता है। आज के विद्वानों के सामने सांस्कृतिक विकास भौतिक और आध्यात्मिक दोनों पक्ष के विकास की समस्या एक गम्भीर और जटिल समस्या हैं जिसे प्रायः दो संस्कृतियों की समस्या के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। विवेच्य युग में और आधुनिक युग में इस सांस्कृतिक समस्या का आरम्भिक रूप मिलता है। इस पर विचार करने से पहले इस काल की सीमा, नामकरण और परिवेश पर विचार किया जायेगा।

वर्ष विशेष के किसी साहित्यिक युग का आरम्भ मानने के बारे में थोड़ा बहुत मतभेद हो सकता है। इसलिये जब छायावाद का आरम्भ सन् 1917 में और अन्त 1636 में माना जाता है तो इन दोनों सीमाओं का आधार इन वर्षों की और इनके आस-पास दो चार साल पहले या बाद की रचनाएँ होती है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आधुनिक कविता के तृतीय उत्थान की सीमा का आरम्भ सम्वत् 1975 से माना है। सन् 1917 को ही छायावाद की आरम्भिक सीमा मानने का कारण यह है कि छायावादी पद्धति की रचनाएँ इसके आस-पास प्रकाशित होने लगी थी। निराला की 'जूही की कली के अतिरिक्त पन्त की 'पल्लव' की कुछ कविताओं की रचना थी 1920 ई. के आस-पास हो चुकी थीं। इसलिये स्पष्ट है कि इस काल के आस-पास साहित्य में एक नये मोड़ का आरम्भ हो गया था। जो पुरानी काव्य पद्धति को छोड़कर एक नयी पद्धति के निर्माण का सूचक था।

'छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि और रचनाएँ'

माखनलाल चतुर्वेदी - माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के जिला होशंगाबाद के गाँव बाबई मे हुआ था। इनके पिता गाँव के स्कूल में अध्यापक थे, इसलिये इनकी आरम्भिक शिक्षा वहीं हुई। ये एक सजग, संवेदनशील एवं उत्साही व्यक्ति थे और आरम्भ से ही देश की दशा के प्रति जागरूक थे। इन पर सैयद अमीर अली 'मीर' स्वामी रामतीर्थ और माधवराव सप्रे का विशेष प्रभाव था। ये पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कार्यशील रहे और इन्होनें 'प्रभा' 'प्रताप' तथा 'कर्मवीर' का सम्पादन किया। छायावाद युग के इनके प्रमुख कविता संग्रह है 'हिमकिरीटिनी' और 'हिमतरंगिनी' इनकी रचनाओं का प्रधान स्वर राष्ट्र प्रेम और आत्मोत्सर्ग का है।

सियाराम शरण गुप्त - सियाराम शरण गुप्त का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला झाँसी के चिरगाँव नामक ग्राम में हुआ था। ये मैथिली शरण गुप्त के छोटे भाई थे। रोग एवं परिवारिक दुखों के कारण इनका जीवन अत्यन्त दुःखमय रहा। वैसे ये सरसता और नम्रता की प्रतिमूर्ति थे। इनकी पहली रचना सन् 1990 मे इन्द पत्रिका में प्रकाशित हुई। इसके बाद सरस्वती में कई रचनाएं छपी। 'मौर्य विजय', 'अनाथ', 'दूर्वादल', 'विषाद', 'आर्द्रा', 'पाथेप', 'मृण्मयी', 'बापू', 'दैनिक' आदि प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं। इनकी भाषा-शैली सरल और स्पष्ट है तथा इन्होनें बड़ी सफलता के साथ मुक्त छन्द का प्रयोग किया हैं।

बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' - 'नवीन' जी का जन्म ग्वालियर राज्य के भापाना गाँव में हुआ था। ग्यारह वर्ष की आयु में इनकी शिक्षा का आरम्भ हुआ। सन् 1917 ई. में हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद कानपुर पहुँचे, जहाँ गणेश शंकर विद्यार्थी कालेज में दाखिला करा दिया, किन्तु गाँधी जी के आह्वान पर कालेज छोड़कर राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगे। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन के दौरान इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। देश के स्वाधीन होने पर ये पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा के सदस्य रहे। कुछ समय तक इन्होनें प्रभा और प्रताप का भी सम्पादन किया था। 'कुंकुम' इनका पहला रचना संग्रह है। 'उर्मिला' काव्य को इन्होनें सन् 1934 में ही पूरा कर लिया था। इनके अन्य काव्य ग्रन्थ हैं- 'अपलक', 'रश्मिरेखा', 'क्वासि' तथा 'विषमायी जनम के फलस्वरूप पहली दशा संघर्ष और तनाव दूसरी स्थिति की मदहोशी और मस्ती दोनों कारण भाव से सम्बद्ध होकर परस्पर पूरक से लगते हैं।

सुभद्राकुमारी चौहान - सुभद्रा जी का जन्म प्रयाग जिले के निहालपुर गाँव में हुआ था, इन्होंनें प्रयाग में ही शिक्षा ग्रहण की। सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन के प्रभाव से इन्होनें शिक्षा अधूरी ही छोड़ दी और ये राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगीं। अपने राजनीतिक कारणों के कारण इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा काव्य रचना की ओर इनको प्रवृत्ति विद्यार्थी काल से ही थी। इनकी कविताएं 'त्रिधार' और 'मुकुल' में संकलित हैं। भाव की दृष्टि से इनकी कविताओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम वर्ग में राष्ट्रप्रेम की कविताएं रखी जा सकती हैं जिनमें इन्होनें असहयोग या आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले वीरों को अपना विषय बनाया है। इनकी भाषा शैली भावों के अनुरूप सरलता और गति लिये हुए हैं।

अन्य कवि - छायावाद युग में राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्य धारा के विकास में जिन अन्य कवियों ने उल्लेखनीय योग दिया अथवा इस धारा के परवर्ती प्रमुख कवियों में से जिन कवियों की एक-दो कृतियां आलोच्य काल में प्रकाश में आयीं उनमें रामनरेश त्रिपाठी, उदयशंकर भट्ट, जगन्नाथ प्रसाद मिलिन्द, दिनकर आदि का उल्लेख आवश्यक है।

छायावाद की सामान्य विशेषताएँ

'छायावाद' शब्द के अर्थ को लेकर आलोचना जगत में काफी विवाद रहा है। इसका कारण यह है कि जहां यथार्थवाद, आदर्शवाद, प्रगतिवाद आदि ऐसे नाम हैं जिनके आधार पर इन वादों के अन्तर्गत स्वीकृति रचनाओं के बुनियादी स्वरूप को आसानी से समझा जा सकता है वहां छायावाद शब्द किसी ऐसे स्पष्ट अर्थ का बोध नहीं कराता, जिसके आधार पर छायावादी काव्य की विशेषताओं को समझा जा सके। हो सकता है कि आरम्भ में 'छाया' से अस्पष्टता की व्यंजना अभिप्रेत रही हो, किन्तु यह अर्थ छायावादी काव्य के स्वरुप को समझाने में सर्वथा असमर्थ है। इसलिए छायावाद के अर्थ को समझने के लिए हमें उन प्रवृत्तियों को जानने का प्रयास करना होगा जो छायावादी काव्य में पायी जाती हैं।

'छायावाद' के अर्थ निर्धारण के सम्बन्ध में एक और भी विवाद सामने आया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे सीमित अर्थ में एक शैली विशेष माना जिसमें लाक्षणिक मूर्तिमत्ता, प्रतीक विधान, विरोध चमत्कार, विशेषण विपयर्य, मानवीकरण, अन्योक्ति विधान आदि पर बड़ा बल रहता है। 'छायावाद के व्यापक अर्थ में उन्होंने रहस्यवाद को भी समाविष्ट किया है, जहां तक भाषा शैली का प्रश्न हैं, छायावाद और रहस्वाद में समानता पायी जाती है। किन्तु विषय-वस्तु की दृष्टि से दोनों में स्पष्ट अन्तर हैं। रहस्यवादी भावना का आलम्बन जहाँ अमूर्त निराकार ब्रह्म है, जो सर्व व्यापक है, वहाँ छायावाद का विषय लौकिक ही होता है।

छायावाद के विवेचन के प्रसंग में स्वच्छन्दतावादी प्रवृत्ति का उल्लेख भी मिलता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने श्रीधर पाठक को आधुनिक काव्यधारा में सच्चे स्वच्छन्दतावाद' के सहयोगियों में काव्यधारा को नये नये विषयों की ओर मोड़ने की प्रवृत्ति तो दिखाई पड़ी, पर भाषा ब्रज ही रहने दी गई और पद्य के ढाचों, अभिव्यंजना के ढंग तथा प्रवृत्ति के स्वरूप - निरिक्षण आदि में स्वच्छन्दता के दर्शन' न हुए। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि शुक्ल जी ने स्वच्छन्दतावाद का उल्लेख करते हुए 'पद्य के ढाँचों। 'अभिव्यंजना के ढंग' प्रकृति के स्वरुप निरीक्षण आदि की बात की है। ये विशेषताएँ परवर्ती छायावाद काव्य में सामने आयीं। वैसे छायावादी काव्य का एक प्रधान लक्षण हैं स्वानुभूति की प्रत्यक्ष वितृप्ति, जो व्यक्तिगत प्रणय से लेकर करुणा और आनन्द तक फैली हुई है।

छायावाद और स्वच्छन्दतावाद की समानता की ओर यद्यपि अनायास ही ध्यान आकृष्ट हो जाता है, किन्तु इन दोनों में बुनियादी अन्तर है। अंग्रेजी के स्वच्छन्दतावादी काव्य से पहले काव्य पर कई शताब्दियों तक कठोर अनुशासन रहा था। इस अनुशासन का रूप धार्मिक भी था और नैतिक तथा काव्यशास्त्रीय भी था।

छायावादी काव्य की अभिव्यंजना पद्धति भी नवीनता और ताजगी लिए हुए हैं। द्विवेदी कालीन खड़ी बोली और छायावादी खड़ी बोली में बहुत अन्तर है। भाषा का विकास समग्र काव्य-चेतना के विकास का अन्तरंग तत्व है। छायावादी अभिव्यंजना निस्संदेह अर्थ गाम्भीर्य के उस उत्कर्ष तक पहुंच जाती है, जिसके आगे जाने की सम्भावना नहीं रहती, हाँ कोई चाहे तो दिशा अवश्य बदल सकता है। महादेवी वर्मा की 'दीपशिखा' की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है -

'झर चुके तारक- कुसुम जब
रश्मियों के रजत पल्लव,
सन्धि में आलोक तक की,
क्या नहीं नभ जानता तब।
पार से अज्ञात वासन्ती,
दिवस रथ चल चुका है।

छायावादी भाव-बोध स्वानुभूति और सौन्दर्य प्रधान कल्पना द्वारा ही निर्मित हुआ है, किन्तु छायावाद की अनुभूति केवल मन के स्तर पर ही नहीं रूक जाती वह और भी गहरी उतरती हुई आत्मा के लोक में संचरण करने लगती है। छायावादी कवि की दृष्टि से अन्तर्मुखी होती हुई पहले तो मन के स्तर पर संचरण करती दिखाई देती है, किन्तु वहां भी उसका पूर्ण परितोष नहीं होता और वह आत्मा तक पहुँच जाती है। इसीलिए यह काव्य निराशा और अकर्मण्यता के स्थान पर आशा, आत्मविश्वास और कर्मवाद की प्रखरता से युक्त है।

काव्य रूपों की दृष्टि से भी छायावादी काव्य अत्यन्त समृद्ध हैं। एक ओर उसमें गीतों और मुक्त छन्द की कविताओं की अधिकता है, तो दूसरी ओर 'ऑस' एवं 'तुलसीदास जैसे काव्यखण्ड भी मिलते हैं और 'कामायनी' महाकाव्य में तो छायावादी संवेदना अपनी समग्रता में मूर्तिमान दिखाई देते हैं। इनके अतिरिक्त 'प्रलय की छाया में' 'राम की शक्ति पूंजा और 'परिवर्तन' जैसी लम्बी कविताएं भी मिलती हैं जिन्हें काव्य रूप की दृष्टि से एक परम्परित सांचे में नहीं रखा जा सकता है। अभिव्यंजना की सांकेतिकता और वक्रता भी छायावादी कवियों की उल्लेखनीय उपलब्धि है।


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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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